जामिया मिल्लिया इस्लामिया के बाद बीते दिनों दिल्ली के जामा मस्जिद इलाके में भी उपद्रवियों ने जमकर उत्पात मचाया


जामिया मिल्लिया इस्लामिया के बाद बीते दिनों दिल्ली के जामा मस्जिद इलाके में भी उपद्रवियों ने जमकर उत्पात मचाया। हिंसा की आग ऐसी फैली कि कई लोग जख्मी हो गए, घंटों तक कई मेट्रो स्टेशन बंद रहे और दिल्ली-गुरुग्राम हाईवे पर 16 किलोमीटर लंबा जाम लग गया। हालांकि शनिवार को जामा मस्जिद के आसपास के इलाकों में लोगों से बातचीत करने पर प्रदर्शन के बारे में जो कुछ भी पता चला उसे जानकर आप भी चौंक जाएंगे।


दरअसल दो दिनों तक चले इस प्रदर्शन के पीछे नागरिकता कानून तो सिर्फ एक बहाना था। इसे असली ताकत और हिंसक रूप गली-गली में पसरी अफवाहों से मिली। नागरिकता छिनने की आशंका में इलाके के शुक्रवार की नमाज के बाद आम लोग भी सड़कों पर निकल पड़े थे। पुलिसिया कार्रवाई के दूसरे दिन शनिवार को हालांकि स्थानीय निवासी खुलकर बोलने से बचते रहे, लेकिन दबी जुबान में सबने माना कि कागज न होने से तो वह देश के नागरिक ही नहीं रहेंगे। विरोध प्रदर्शन के हिंसक मोड़ लेता देख ज्यादातर लोग वापस लौट गए।



मसलन, मीना बाजार में फुटपाथ पर कपड़ों की दुकान लगाए अकबर खान कहते हैं कि साहब, हमारा घर मिदनापुर है। रोजी-रोटी के लिए पांच साल पहले दिल्ली आ गया। यहां का कोई कागज है नहीं। घर का भी पक्का नहीं कि कोई दस्तावेज होगा। फिर, पिछले दस दिनों से इलाके में काना-फूसी चल रही थी कि कागज न होने से देश के नागरिक नहीं रहोगे। शुक्रवार को जब मस्जिद में प्रदर्शन की बात उठी तो लगा कि यह तो अपनी भी समस्या है। इसके बाद हम भी उनके साथ हो लिए। दिन-भर की उछल-कूद के बाद शाम का चूल्हे-चौके और सुबह रोजी पर बैठ गए हैं।


सहरसा के मोहम्मद सुलेमान जामा मस्जिद इलाके में ट्रेवल एजेंसी चलाते हैं। वह करीब दस साल से दिल्ली में हैं। सुलेमान कहते हैं कि हमने गांव के प्राइमरी स्कूल में पढ़ाई की। वहां पहचान बताने से जुड़े कागज का कोई खास काम नहीं पड़ा। दिल्ली आकर काम शुरू कर दिया। वोटर कार्ड बना हुआ है। लेकिन लोग बता रहे हैं कि अब अपने पुरखों का कागज भी देना होगा। इससे हम परेशान हो गए थे। शुक्रवार की नमाज के बाद जब लोग सड़क पर जाने लगे तो हम भी चले गए। लेकिन शाम ढलने से पहले वापस लौट आए।


जामा मस्जिद व चांदनी चौक इलाके में फुटपाथ, रेहड़ी-पटरी पर काम करने वाले ज्यादातर लोगों की कमोवेश इसी तरह की कहानी बयां की। इलाके की सड़कों व गलियों में पिछले दस दिन दिनों से लोगों के बीच चर्चा यही आम रही कि कागज न होने से उनकी नागरिकता छिनने वाली है। लेकिन सूचना के मूल स्रोत की किसी को कोई जानकारी नहीं थी। फिजां में गंजूती अफवाहों के बीच शुक्रवार को जब कुछ लोग सड़क पर उतरे तो बाकी लोगों ने उनके साथ जाना बेहतर समझा। इसमें से ज्यादातर लोगों ने शाम ढलने से पहले वापसी कर ली। जो बचे भी थे, वह प्रदर्शन के हिंसक मोड लेने के बाद कदम घुमा लिए